मसरूर मंदिर-"रोक-कट टेम्पल" नाम से प्रचलित यह मंदिर हरिपुर कस्बे से 3 किलोमीटर दूर 763 मीटर की ऊंचाई पर एक रेतीली पहाड़ी पर स्थित है। पत्थर से काट कर बनाया गया यह मंदिर कला का एक अभूतपूर्व नमूना है। इसकी लम्बाई 160 फुट और चौड़ाई 105 फुट है। विशाल पत्थर को तराश कर निर्मित यह मंदिर भारत में अदिवत्या है।
मंदिर को कुरद्वारा के नाम से पूजा जाता है। मुख्य मंदिर में राम, लक्ष्मण और सीता की प्रतिमाएं पत्थर की नक्काशी करके बने गई हैं। ऐसा भी हो सकता है कि आरम्भ में यह मंदिर भगवन शिव को समर्पित था तथा बाद में वैष्णव धर्म का प्रादुर्भाव होने से इसे विष्णु भगवान को समर्पित कर दिया गया हो। पुरतात्विक विभाग के संरक्षण में यह प्राचीन मंदिर तथा इसमें तराशी गई मूर्तियां महाबलि-पुरम की छठी और एलोरा के मंदिरों की दसवीं शताब्दी की याद दिलाती हैं। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण पाण्डवों ने कराया था। वर्ष 1913 में पुरातात्विक विभाग के हरग्रीब्ज ने इसकी वास्तुकला का गहराई से अध्ययन किया था।
वैसे तो भारत को अगर मंदिरों का देश कहा जाए तो कोई गलत नही होगा। ऐसे ही एक विशेष मंदिर के बारे में हम आप को बता रहें है। हम बात कर रहें हैं हिमालयन पिरामिड के नाम से विख्यात बेजोड़ कला के नमूने रॉक कट टेंपल मसरूर जो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मसरूर गांव में स्थित हैं। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यह मंदिर 15 बड़ी चट्टानों पर बनाया गया है।
चलिये जानते हैं इस ऐतिहासिक मंदिर के इतिहास के बारे में और इस मंदिर की विशेषता के बारे में मंदिर के गर्भ गृह में अभी भी श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ विराजमान हैं।पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को 8वीं सदी में बना माना गया है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यह मंदिर उत्तर भारत का इकलौता ऐसा मंदिर है जिस पर पत्थरों पर खूबसूरत कलाकारी की गई है। इस मंदिर को अजंता-एलोरा ऑफ हिमाचल भी कहा जाता है। हालांकि ये मंदिर एलोरा से भी पहले का हैं। इस मंदिर में पहाड़ काट कर गर्भ गृह, मूर्तियां, सीढ़ियां और दरवाजे बनाए गये हैं। इसके साथ ही मंदिर के सामने मसरूर झील है जिसके कारण मंदिर की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। झील में मंदिर के कुछ हिस्सों का प्रतिबिंब दिखाई देता है।उत्तर भारत में इस कला का यह एकलौता मंदिर हैं। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था और मंदिर के सामने खूबसूरत झील को पांडवों ने अपनी पत्नी द्रोपदी के लिए बनवाया गया था।
मंदिर की दीवार पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश और कार्तिकेय के साथ अन्य देवी देवताओं की आकृति देखने को मिल जाती हैं।
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